घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत निवास आदेश
भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं को कई प्रकार के प्रतिकार प्रदान करता है। एैसा दिखता है कि इस अधिनियम को तैयार करने के पीछे प्रारंभिक विचार एक एैसे व्यापक अधिनियम को तैयार करना था जिसमें महिलाओं को विभिन्न अधिनियमों मंे प्राप्त विभिन्न प्रतिकार प्राप्त हैं । निवास का अधिकार या निवास उपलब्ध करवाना हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत आता है । हालांकि यह घरेलू हिंसा अधिनियम के बहुत ही भयानक प्रावधान में से एक है जिसमें प्रतिवादीगण सम्पत्ति में अपना नियंत्रण खो सकता है ।
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 में निवास आदेश को प्रभाषित किया गया है, जो यह कहता है किः
धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय, मजिस्ट्रेट यह समाधान होने पर कि घरेलू हिंसा हुई है तो निम्नलिखित निवास आदेश पारित कर सकेगाः
(क) साझी गृहस्थी से, किसी व्यथित व्यक्ति के कब्जे को बेकब्जा करना या किसी अन्य रीति में उस कब्जे में विघ्न डालने से प्रत्यर्थी, उस साझी गृहस्थी में विधिक या साधारण रूप से हित रखता है या नहीं ।
(ख) प्रत्यर्थी को, उस साझी गृहस्थी से स्वयं को हटाने का निर्देश देना ।
(ग) प्रत्यर्थी या उसके किसी नातेदारों को साझी गृहस्थी के किसी भाग में, जिसमें व्यथित व्यक्ति निवास करता है, प्रवेश करने से अवरूद्ध करना ।
(घ) प्रत्यर्थी को, किसी साझी गृहस्थी के अन्यसंक्रान्त करने या व्ययनित करने या उसके विल्लंगम करने से अवरूद्ध करना ।
(ङ) प्रत्यर्थी को, मजिस्ट्रेट से इजाजत के सिवाय, साझी गृहस्थी में अपने अधिकार त्यजन से, अवरूद्ध करना या
(च) प्रत्यर्थी को, व्यथित व्यक्ति के लिए उसी स्तर की आनुकल्पिक वास सुविधा जैसी वह साझी गृहस्थी में उपयोग कर रही थी या उसके लिए किराए का संदाय करने, यदि परिस्थितियां एैसी अपेक्षा करें, सुनिश्चित करने के लिए निर्देश करना ।
(2) मजिस्ट्रेट व्यथित व्यक्ति या एैसे व्यथित व्यक्ति की किसी सन्तान की सुरक्षा के लिए, संरक्षण देने या सुरक्षा देने या सुरक्षा की व्यवस्था करने के लिए कोई अतिरिक्त शर्त अधिरोपित कर सकेगा या कोई अन्य निदेश पारित कर सकेगा जो वह युक्तियुक्त रूप से आवश्यक समझे ।
(3) मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा निवारण के लिए प्रत्यर्थी से, बन्धपत्र, प्रतिभूओं सहित या उसके बिना निष्पादित करने की अपेक्षा कर सकेगा ।
(4) उपधारा (3) के अधीन कोई आदेश दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 8 के अधीन किया गया कोई आदेश समझा जाएगा और तदनुसार कारवाई की जाएगी ।
(5) उपधारा (1), उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन किसी आदेश को पारित करते समय, न्यायालय, उस व्यथित व्यक्ति को संरक्षण देने के लिए या उसकी सहायता के लिए या आदेश के क्रियान्वयन में उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति के लिए, निकटतम पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को निदेश देते हुए आदेश भी पारित कर सकेगी ।
(6) उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करते समय, मजिस्ट्रेट, पक्षकारों की वित्तयी आवश्यकतओं और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए किराए और अन्य संदायों के निर्मोचन से संबंधित बाध्यताओं को प्रत्यर्थी पर अधिरोपित कर सकेगा ।
(7) मजिस्ट्रेट, उस पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को, जिसकी अधिकारिता में, संरक्षण आदेश के कार्यान्वयन में सहायता करने के लिए मजिस्ट्रेट के पास पहुंचा जाता है, निदेश कर सकेगा ।
(8) मजिस्ट्रेट, व्यथित व्यक्ति को उसके स्त्रीधन या किसी अन्य सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति को, जिसके लिए वह हकदार है, कब्जा लौटाने के लिए प्रत्यर्थी को निदेश दे सकेगा ।
समीक्षा
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पारित निवास आदेश या तो निषेधात्मक या अनिवार्य होंेगे। मजिस्ट्रेट प्रतवादी को अपनी किसी भी सम्पत्ति का त्याग करने या जिससे व्यथित महिला के हितों को नुकसान या हानि पहुंचती हो, उसको रोकने के लिए आदेश पारित कर सकता है और एैसा आदेश निषेधात्मकता की सीमा तक मान्य होगा । इसके अलावा मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को साझी गृहस्थी से अलग होने के लिए उसके विरूद्ध निर्देश पारित कर सकता है या मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को व्यथित महिला के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए उसे अलग से आवास उपलब्ध करवाने के लिए निर्देश पारित कर सकता है और इस सीमा तक पारित आदेश अनिवार्य होंगे । इसमें कुछ सहायक राहत भी शामिल होंगी जिसमें प्रतिवादी के द्वारा बोन्ड भरना, निकटतम एस.एच.ओ महिला की सुरक्षा की जिम्मेदारी देना और स्त्रीधन या किसी भी तरह की अन्य सम्पत्ति को वापिस दिलवाना जिसकी वह महिला हकदार हो और मजिस्ट्रेट इस सम्बन्ध में इन राहतों को दिलवाने के लिए इनहें इस धारा में उल्लेखित कर सकता है । वास्तव में इस धारा को साझी गृहस्थी की धारा के साथ पढा जाये जो कि मेरे द्वारा अन्य आर्टिकल में शामिल किया गया है । कोई भी साझी गृहस्थी के बारे में किसी भी सामान्य प्रश्नों को पढ़ सकता है । अब हम एैसे प्रश्नों पर आते हैं जो कि इस धारा के सम्बन्ध में अकसर हमारे समक्ष आते हैं ।
प्रश्नः यदि व्यथित महिला के पास किसी सम्पित्त से संबंधित कोई भी कानूनी अधिकार (समान हित या अधिकार) प्राप्त न हों तो क्या वह उसी गृहस्थी में शामिल होने के लिए राहत मांग सकती है या नहीं जहां से उसे निषकास्ति किया गया था ।
उत्तरः हां, जब तक महिला यह साबित करने में सफल रहती है कि वह साझी गृहस्थी लगातार रह रही थी और उसका पति अब भी उसी सम्पत्ति में रह रहा है तो तब वह उसी गृहस्थी में रहने के लिए राहत की मांग कर सकती है ।
प्रश्नः जब प्रतिवादी एवं व्यथित महिला साझी गृहस्थी में रह रहे हों तो तब वह महिला कैसे प्रतिवादी को उस साझी गृहस्थी से निकलवाने के लिए मांग कर सकती है और यह कैसी कार्य करेगा ।
उत्तरः इसमें दो परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं कि कथित गृहस्थी को इस प्रकार से अलग किया जाये कि प्रतिवादी एवं महिल एक दूसरे को बिना परेशान करे उसी सम्पत्ति के दो अलग-अलग भाग में रह सकते हैं औ इस परिस्थिति में न्यायालय प्रतिवादी को एैसे स्थान से अलह रहने के लिए निर्देश दे सकता है । अन्य परिस्थिति में जहां यदि मकान को अलग नहीं किया जा सकता हो तो तब न्यायालय प्रतिवादी को पूर्ण रूप से वहां कथित गृहस्थी से स्वयं को अलग करने का निर्देश पारित कर सकता है ।
प्रश्नः क्या प्रतिवादी साझी गृहस्थी को बेच सकता है या अपना अधिकार त्यजन कर सकता है।
उत्तरः हां, जब तक कि इसे अवरूद्ध करने के लिए कोई आदेश न्यायालय के द्वारा पारित नहीं किया गया हो तब तक वह व्यक्ति सम्पत्ति को जैसे चाहे वैसे उपयोग में ला सकता है। हालांकि यदि कोइ अपने अधिकार का त्यजन कर रहा हो तब यह सुनिश्चित करना होगा कि वह एैसा रूपये प्राप्त करने के लिए कर रहा हो । न्यायालय के द्वारा उपहार नामे को अवैध घोषित किया गया है । इसके अतिरिक्त भी न्यायालय प्रतिवादी को एैसा करने से हमेशा निषेध करती है इसलिए यह बहतर होगा कि एैसे किसी भी विक्रय को परिवारे के सदस्यों या निकटतम व्यक्तियों के अलावा किसी अन्य को विक्रय किया जाये ।
प्रश्नः इसका क्या अर्थ है कि जब तक अधिनियम में प्राधानित हो, मजिस्ट्रेट उपरोक्त सशर्त आदेश को पारित करते समय यह सुनिश्ति करे कि प्रतिवादी के द्वारा वैकल्पिक आवास उसी सुविधा स्तर का होना चाहितए जो कि व्यथित महिला साझी गृहस्थी में उपयोग कर रही थी
उत्तरः इसा अर्थ यह है कि प्रतिवादी कोई एैसा वैकल्पिक आवास उपलब्ध नहीं करवाये जो कि गंदा हो, और जर्जर हालत में हो । हालांकि इससे यह कल्पना नहीं की जा सकती कि वह आवास पूर्णतः उसी तरह का हो, इसका अर्थ है कि वह आवास महिला के द्वारा उपयोग किये जा रहे हिस्से के बराबर सुविधा का होगा ।
प्रश्नः यदि व्यथित महिला के द्वारा उपयोग किया जा रहा आवास निचले स्तर का होगा तो क्या व्यथित महिला उच्च स्तरीय आवास की मांग कर सकती है ।
उत्तरः नहीं, जहंा तक इस अधिनियम का सम्बन्ध है, व्यथित महिला केवल उसी स्तर के आवास की मांग कर सकती है जिसको वह उपयोग कर रही थी । यदि उसके पास अपने पति के विरूद्ध कोई स्वतंत्र अधिकार हो तो तब वह इस सम्बन्ध में उचित राहत की मांग दीवानी न्यायालय से कर सकती है ।
प्रश्नः इस अधिनियम में पुलिस अफसर या सुरक्षा अधिकारियों को आदेश का पालन करवाने के लिए शामिल किया जाता है ।
उत्तरः यह अधिनियम न्यायालय को यह शक्ति प्रदान करता है कि उसके द्वारा पारित किये गये आदेश का अनुपालन सुरक्षा अधिकारियों या कथित क्षेत्र के स्थानिय पुलिस थाना के अफसर के द्वारा उनकी देखरेख में करवाया जाये । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो मजिस्ट्रेट उस क्षेत्र के पुलिस थाना प्रभारी को यह निर्देश दे सकते हैं कि न्यायालय के द्वारा पारित आदेश का अनुपालन प्रतिवादी के द्वारा ठीक ढंग से किया जा रहा है ।
मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – info@shoneekapoor.com पर पूछ सकते हैं ।
यदि आप घरेलू ंिहंसा के मामलों में आदमी के हक में पारित नवीनतम निर्णय के बारे में जानना चाहते हैं तो मैं आपको यह सलाह दूंगा कि आप इस पेज को पढें
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