वैवाहिक मामलों में निषेधाज्ञा
अपनी सम्पत्ति को वैवाहिक विवाद के दौरान सुरक्षित करने की कानूनी प्रक्रिया
एैसा कई बार देखा गया है कि कई बार वैवाहिक मामले सम्पत्ति से संबंधित विवाद बन जाते हैं और यह ज्यादातर तब होता है जब एक पक्षकार लालची बन जाती है और अपने हक में समझौता करवाना चाहता है, इसके लिए वह सम्पत्ति को माध्यम बनाता है । आखिरकार वह पक्षकार हो कि सम्पत्ति का स्वामी होता है उसे विरोधी पक्षकार के लालच के कारण नुकसान होता है । जबकि अधिकतर मामलों में लड़की ही लड़के या उसके परिवार वालों के घर जाती है, तब उसके पति या उसके रिश्तेदारों के स्वामित्व की सम्पत्ति विवाद का विषय बन जाती है जो कि वैवाहिक विवाद को और अधिक उग्र बना देता है । हम सभी इस बात से भली भांति परिचित हैं कि जहां पत्नी या बहु या रिश्तेदारी मेें कोई लड़की सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त कर लेती है और उसका कब्जा वापस करने से इन्कार कर देती है, इन मामलों में सम्पत्ति को खाली करवाने के लिए उस व्यथित पक्षकार को काफी रूप्या और समय बर्बाद करना पड़ता है । हालांकि कुछ एैसे मामलें भी सामने आते हैं जिसमें लड़की और उसके रिश्तेदार उसके ससुराल में या उसके रिश्तेदारों के घर जाकर उनकी शांतिपूर्वक रहन-सहन को भंग करने का काम करते हैं ।
बीतें कुछ साल पहले इसको रोकने के लिए, पति के माता-पिता को यह सलाह दी जाती थी कि वह अपने बेटे को बेदखल कर दें, जबकि न्यायालय इस बात को लेकर बहुत होशियार हो गये हैं और वह इस चालाकी से भली भांति परिचित हैं । इसलिए एक बेहतर विकल्प है और बेहतर कानूनी रास्ता है कि सम्पत्ति को विवाद से बचाने के लिए उस पर निषेधाज्ञा मांग ली जाए । निषेधाज्ञा का आदेश मकान के मालिक के द्वारा उस व्यक्ति विषेश के विरूद्ध पारित करवाया जा सकता है जिस से उसे अपने घर मेंं जबरन दाखिल होने और ज़ोर जबरदस्ती से सम्पत्ति का कब्जा करने के लिए धमकाया गया हो । एैसे मामले में जहां आवास किराये का हो तो तब किरायेदार और उस सम्पत्ति का मालिक वह दोनों निषेधाज्ञा का ओदश पारित करवा सकते हैं ।
निषेधाज्ञा दो प्रकार की हो सकती है निषेधात्मक और अनिवार्य । निषेधात्मक निषेधाज्ञा एैसा कृत्य करने से रोकती है जो कि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 38 के अधीन संज्ञान में लिया जाता है । निषेधाज्ञा वादी के पक्ष में पारित की जा सकती है जो कि उसके पक्ष में किसी दायित्व का उल्लंघन करने को रोकती है । अनिवार्य निषोधाज्ञा किसी भी दायित्व का उल्लंघन करने के लिए पारित की जा सकती है, इसमंे एैसे कृत्यों का उल्लेख करना आवश्यक होगा जिसे न्यायालय निषेध कर सके । न्यायालय अपने विवेक से इस बात के लिए निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर सकती है जिसे उसके समक्ष शिकायत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है या एैसा कृत्य निषेध किये जाने योग्य है । तो संक्षेप में यदि निषेधाज्ञा किसी कृत्य को कारित करने के लिए विवश करती है तो तब वह अनिवार्य निषेधाज्ञा होगी, लेकिन जब किसी भी प्रकार का कोई भी कृत्य करने की अनुमति न हो तो तब निषेधाज्ञा निषेधात्मक होती है। निषेधात्मक और अनिवार्य निषेधाज्ञा में काई फर्क नहीं किया जा सकता है सिवाये इसके कि पहले वाली निषेधाज्ञा नकारात्मक होती है और बाद वाली निषेधाज्ञा सकारात्मक होती है । वैवाहिक विवादों में पति के माता-पिता के द्वारा निषेधात्मकनिषेधाज्ञा मांगी जा सकती है या फिर मालिक के द्वारा बहु और उसके रिश्तेदारों के विरूद्ध, जिन से उनको भय हो कि वह उनके शांतिपूर्वक रहन-सहन व मकान मेंं जबरन कब्जा कर सकते हैं । हालांकि पति इस प्रकार के अनुतोष को प्राप्त करने के लायक नहीं होगा विशेषतः तब जबकि वह अपनी पत्नी@उनके बच्चों के साथ अकेला रह रहा हो । फिर भी पति इस बात के लिए अपनी पत्नी के विरूद्ध इसनिषेधाज्ञा की मांग कर सकता कि उसकी पत्नी को विवादित सम्पत्ति में दाखिल होने से रोका जा सके वो भी कानूनी प्रक्रिया का पूर्ण पालन करते हुए । यह तब भी एक प्रभावी उपाय है जब किसी भी एक पक्षकार के द्वारा तलाक मांगा जा चुका हो ।
किसी भी व्यथित पक्षकार के द्वारा अंतिरम निषेधाज्ञा प्राप्त की जा सकती है जिसमें उसे निम्नलिखित तथ्य प्रमाणित करने होंगेः
(क) प्रथम दृष्टिया मामला
(ख) उसके पक्ष में सुविधा का संतुलन
(ग) अपूर्णीय क्षति
अन्य प्रकार की निषेधाज्ञा भी होती हैं जैसे कि फुुेसबुक @टव्टिर @इन्सटाग्राम @यूटयूब या फिर वाहटस्अैप या एस.एम.एस के द्वारा संदेश भेजना, जिसमें इस प्रकार के सिद्धांत का पालन किया जाता है, जिसे मैं अपने अगले लेख में लिखंूगा जो कि सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध निषेधाज्ञा पर समर्पित होगा ।
मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – info@shoneekapoor.com पर पूछ सकते हैं ।
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