घरेलू हिंसा के मुकदमे में शामिल होने वाले कदम/ अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया।
विभिन्न प्रकार के मुकदमों में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के संबंध में बहुत सारे प्रश्नों के समूह हैं । हमारे वॉट्सएप्प समूह पर उनमें से घरेलू हिंसा के मुकदमे में शामिल होने वाली प्रक्रिया का प्रश्न सर्वाधिक है । इस अनुच्छेद में मैनें घरेलू हिंसा के मुकदमें में शामिल होने वाले कदमों को सूचीबद्ध किया है। इन कदमों का अनुसरण केवल दिल्ली में किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों में इन कदमों का अनुसरण थोड़ा हटकर किया जाता है ।
कदम सं-1: शिकायत में मुकदमें के तथ्यों , मांगा गया अनुतोष और पक्षकारों के सभी वैक्तिक विवरण के साथ शिकायतकरती द्वारा शिकायत को मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट/ मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी या इलाक़ा मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है । दुर्लभतम परिस्थितयों में शिकायतकरती के पक्ष को सुनने और उसके द्वारा शपथ पत्र के साथ दायर दस्तावेजों में किसी का अवलोकन करने के पश्चात न्यायालय एक पक्षीय आदेश पारित कर सकता है ।
कदम सं-2: घरेलू घटना का विवरण माँगना: न्यायालय शिकायत की जांच करता है और घरेलू घटना का विवरण तैयार करने के लिए निर्देश देता है ।(इस प्रक्रिया का अनुसरण दिल्ली में होता है ।यदपि कुछ राज्यों में, तुरंत घरेलू घटना का विवरण नहीं मांगा जाता है और न्यायालय कदम सं 4 के तहत आगे बढ़ता है । इन राज्यों में घरेलू घटना का विवरण विपक्षी द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के पश्चात मांगा जाता है ।)
कदम सं-3: संरक्षण अधिकारी शिकायतकरती से मिलता है: संरक्षण अधिकारी शिकायतकरती को घरेलू घटना का विवरण तैयार करने के लिए बुलाता है और उसे संबंधित न्यायालय के अवलोकनार्थ भेजता है ।
कदम सं-4: उत्तरदाता को सूचना: घरेलू घटना का विवरण रिपोर्ट और शिकायत पत्र का अवलोकन करने के पश्चात न्यायालय दूसरे पक्ष को नोटिस(सूचना) जारी करता है और उसको उत्तर प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित करता है या वह शिकायत में गुण न पाने की स्थिति में,उस शिकायत पत्र को सुनवाई पर स्वयं खारिज कर सकता है ।(यदपि इस प्रकार के आदेश की दुर्लभ सम्भावना है और सामान्यतः न्यायालय नोटिस जारी करता है।)
कदम सं-5: मध्यस्थता का निर्देश: शिकायत के दोनो पक्षों के उपस्थित होने पर दिल्ली में न्यायालय सभी मुकदमों में मध्यस्थता के लिये उपस्थित होने का निर्देश जारी करता है और मध्यस्थ पहले उनमें समझौता कराने का प्रयास करने के लिए है।
कदम सं-6: समझौता कार्यवाही: न्यायालय द्वारा समझौता कार्यवाही संचालित करने के पश्चात यदि मध्यस्थ सफल हुआ तो मामले का समाधान हो जाएगा । यदि मध्यस्थ के समक्ष मध्यस्थता की कार्यवाही का समापन असफलता के साथ है तो न्यायालय मामले के साथ आगे बढ़ेगा ।
कदम सं-7: उत्तर एवं प्रतिउत्तर :एकबार जब उत्तर दाखिल और मध्यस्थता असफल हो गया है, शिकायतकरती को विपक्षी के द्वारा प्रस्तुत उत्तर का अपना प्रतिउत्तर दाखिल करने के लिए निर्देश दिया जाता है ।दिल्ली में न्यायालय पक्षकारों को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसरण में आय शपथ पत्र भी प्रस्तुत करने के लिए कहता है ।
कदम सं-8: अन्तरिम गुजारे पर आदेश: न्यायालय मुकदमें में दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अन्तरिम गुजारे के आवेदन पर और अन्य अन्तरिम अनुतोष की स्थिति में आदेश पारित करता है ।
कदम सं-8: विवाद्यक तैयार करना: न्यायालय तब आगे बढ़ते हुये न्यायिक निर्णय के लिए विवाद्यक आरोप तय करता है और मामले को पक्षकारों के साक्ष्य के लिए निश्चिंत करता है ।
कदम सं-9:शिकायतकरती का साक्ष्य: शिकायतकरती को निर्देशित किया जाता है कि वह अपना साक्ष्य शपथ पत्र के माध्यम से उचित दस्तावेजों, कागजात आदि के साथ प्रस्तुत करे और अपने गवाहों को बुलवाये ।
कदम सं-10: उत्तरदाता का साक्ष्य: उत्तरदाता को प्रासंगिक दस्तावेजों,कागजात को प्रस्तुत करने तथा अपने गवाहों को बुलाने के माध्यम से अपना साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है ।
कदम सं-10: अन्तिम बहस: अन्तिम बहस के लिये मामले को योजित किया जाता है और मामले को न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाता है ।
कदम सं-12: आदेश: न्यायालय आदेश/निर्णय पारित करता है जहाँ वह शिकायत करती द्वारा मांगे गए सभी या कुछ अनुतोष को प्रदान करता है या सम्पूर्ण शिकायत को खारिज कर देता है ।
मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – info@shoneekapoor.com पर पूछ सकते हैं ।
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