धारा-23एः हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का प्रतिवाद काउण्टर क्लेम
जब भारत आजाद हुआ तब हिन्दू समाज में किसी पुरूष व महिला को तलाक का अधिकार नहीं था तथा पुरूषों को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति थी, पहले लोकसभा चुनाव के बाद 1955 में हिन्दू अधिनियम बना जिसके तहत तलाक को कानूनी दर्जा दिया गया, एक से अधिक विवाह करने को गैर कानूनी घोषित किया गया हालांकि अधिनियम में कई प्रकार के बदलाव किये गये और इसमें विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम 1976 का 68वां संशोधन पारित करते हुए धारा-23ए को जोड़ा गया।
इसके पीछे विधान-मंडल का उद्देश्य प्रतिवादी को इस अधिनियम के तहत किसी भी राहत के लिए अलग-अलग याचिकाएं दाखिल करने से होने वाली परेशानी को रोकना था । यह मूल रूप से प्रतिवादी को इस अधिनियम के तहत दिए गये राहत प्राप्ति के लिए काउंटर क्लेम दाखिल करने की अनुमति प्रदान करता है, जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 8 नियम 6 में बताया गया है कि काउण्टर क्लेम प्रतिवादी यानि जिसके खिलाफ मुकदमा योजित किया गया है उस व्यक्ति के खिलाफ जो वादी हे या जिसने मुकदमा दायर किया है, काउण्टर क्लेम ला सकता है जहां प्रतिवादी को वादी के खिलाफ कोई ऐसा वाद हेतु प्राप्त हुआ है।
धारा-23ए हिन्दू विवाह अधिनियम एक नजर मेंः-
विवाह-विच्छेद, न्यायिक पृथक्करण या दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए किसी कर्यवाही में प्रत्यर्थी अर्जीदार के जारकर्म, क्रूरता या अभित्यजन के आधार पर चाहे गये विवाह-विच्छेद यानि तलाक का न केवल विरोध कर सकेगा बल्कि वह उस आधार पर इस अधिनियम के अधीन किसी विवाह-विच्छेद या अन्य राहत के लिए काउण्टर क्लेम (प्रतिवाद) भी कर सकेगा यदि अर्जीदार का जारकर्म, क्रूरता, अभित्यजन साबित हो जाता है तो न्यायालय प्रत्यर्थी को इस अधिनियम के अधीन कोई ऐसा राहत दे सकेगा जिसके लिए वह हकदार होता/ होती जिसमें उसनें आधार पर ऐसे अनुतोष की मांग करते हुए अर्जी प्रस्तुत की होती।
स्पष्टीकरण- अधिनियम की धारा-23ए प्रतिवादी को तलाक की कार्यवाही, न्यायिक पृथक्करण, विवाह-विच्छेद या वैवाहिक अधिकारों की बहाली की अनुमति प्रदान करती है। कोई भी पक्षकार जो कि हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही कर रहे हैं और जब याचिकाकर्ता एक दोषी पक्षकार है, तो विपक्षी न सिर्फ उसका सामना कर सकता है, बल्कि दोषी याचिकाकर्ता के विरूद्ध उसके द्वारा किये गये गलत कृत्यों के सबूत भी दाखिल कर सकता है और याचिका में स्वयं के लिए ऐसा अनुतोष भी मांग सकता है जैसे कि याचिका विपक्षी के द्वारा स्वयं योजित की गई हो।
अक्सर देखा जाता कि महिलायें 498ए भारतीय दण्ड संहिता, 3/ 4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम, घरेलू हिंसा के तहत, या किसी अन्य धारा में भरण-पोषण की प्राप्ति के लिए कार्यवाही करती हैं, या क्रूरता के आधार पर तलाक चाहती हैं, परित्याग करती हैं, या वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुुकदमा दााखिल करती हैं जिसमें प्रतिवादी की जवाबी कार्यवाही अपना पक्ष रखने व योजित वाद का सामना करने की होती है तथा वास्तव में विपक्षी को स्वयं को साबित करने के लिए असली विकल्प हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 23ए के अन्तर्गत काउंटर क्लेम दाखिल करना होता है, वह पक्षकार जो कार्यवाही दाखिल करना चाहता/ चाहती थी वह अपने मुकदमे को न्यायालय में दाखिल करने से वंचित न रहे और 23ए हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत काउण्टर क्लेम दाखिल कर अनुतोष प्राप्त कर सके काउण्टर क्लेम के माध्यम से प्रतिवादी को नई याचिका योजित करने की आवश्यक्ता नहीं बल्कि याचिका में ही काउण्टर क्लेम के माध्यम से मांग सकता है जिसके लिए नई याचिका प्रस्तुत करने की आवश्यक्ता नही चाहे व्यक्ति याचिकाकर्ता हो जिसने मूल याचिका योजित की हो या फिर राहत/ अनुतोष मांगने वाला व्यक्ति प्रतिवादी हो। तथ्य यह कि है अधिनियम की धारा 23ए के तहत प्रतिवादी को भी राहत/ अनुतोष प्रदान किया जा सकेगा जिससे स्पष्ट होता है कि भारतीय न्यायपालिका किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भी भेदभाव नही करती इस अधिनियम के तहत पक्षकारों के साथ भेदभाव न हो इसलिए विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम 1976 में 68वां संशोधन कर धारा 23ए को जोड़ा गया, चंूकि इस प्रावधान का प्रयोग बहुत कम प्रयुक्त होता है इसलिए इस विषय में निर्णयों का कमी है। हालांकि दिल्ली, इलाहाबाद, आंध्रा प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालायों ने एैसे निर्णय पारित किये हैं कि यदि कोई काउंटर क्लेम दाखिल करने का इच्छुक है तो उसे वित्तीय सहायता मिलेगी ।
न्यायालयों ने यह माना है कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका को परित्याग के आधार पर धारा 23ए के अन्तर्गत दाखिल करने से रोका भी जा सकता है, तथा अन्य कोई भी याचिका जिसमें हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत दिये गये जारता, क्रूरता या अन्य कोई आधार का दावा किया जाता है को रोका जा सके और प्रतिवादी अपना पक्ष रखते हुए धारा 23ए के तहत काउण्टर क्लेम दाखिल कर अनुतोष प्राप्त कर सके व नई याचिका योजित करने की आवश्यकता न पड़े, अक्सर देखा गया है कि जब भी विपक्षी द्वारा याचिका मेंे काउण्टर क्लेम दाखिल किया जाता है तो याचिकाकर्ता अपनी याचिका को वापस लेने की हद तक चला जाता है या इसेे स्वतः खारिज करवा देता है। दिल्ली और कर्नाटका दोनों के उच्च न्यायालयों ने यह माना है कि इन मामलों में न्यायालय को काउंटर क्लेम गुणदोष के आधार पर निर्णीत करना होता है। जबकि दीवानी मामलों में कोई भी पक्षकार किसी भी स्तर पर अपना दावा वापस ले सकता है और काउंटर क्लेम को केवल इसी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता नें अपनी याचिका वापस ले ली है कई बार तो ऐसा भी देखा जाता है कि याचिका खारिज होने के बाद भी काउण्टर क्लेम को निर्णीत किया जाता है। संक्षेप में कोई भी व्यथित व्यक्ति जो कि इस स्थिति का सामना कर रहा है जहां उसकी पत्नी केे द्वारा हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत मुकदमा योजित किया गया हो, तो वह व्यक्ति अपना पक्ष रखने हेतु न्यायालय में काउंटर क्लेम दाखिल करने का विकल्प को चुन सकेगा।
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