घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पारित होने वाले संरक्षण आदेश से संबंधित प्रश्न
विधायका अपने विवेकानुसार हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत हिंसा करने वाले व्यक्ति को दंडित करने तक ही सीमित नहीं है यह हिंसा करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध घरेलू ंिहंसा अधिनियम या अन्य किसी भी अधिनियम के तहत उसको घरेलू हिंसा करने से रोकने के लिए आदेश भी पारित कर सकती है जैसा कि मजिस्ट्रेट के द्वारा विशिष्ट किया गया हो, यहां तक कि घरेलू हिंसा के कृत्य करने के लिए उकसाने और इसे बढ़ावा देना उस आदेश की उल्लघंना करना माना जायेगा । इन आदेशों को महिला के विरूद्ध घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत संरक्षण आदेश भी कहा जा सकता है और इन्हें घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 18 में विशिष्ट तौर पर उल्लेखित किया गया है । एैसे आदेश को व्यथित व्यक्ति के हित में धारा 2 (ए) की परिभाषा के अन्तर्गत पारित किया जा सकेगा ।
‘व्यथित व्यक्ति‘ से कोई एैसी महिला अभिप्रेत है जो प्रत्यर्थी की घरेलू नातेदारी में है या रही है और जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्यर्थी द्वारा किसी घरेलू ंिहंसा का शिकार रही हो ।
धारा-18ः संरक्षण आदेशः मजिस्ट्रेट व्यथित और प्रत्यर्थी को सुनवाई का एक अवसर दिए जाने के पश्चात और इसका प्रथम दृष्टिया समाधान होने पर कि घरेलू ंिहंसा हुई है या होने वाले व्यक्ति है, व्यथित व्यक्ति के पक्ष में तथा प्रत्यर्थी को निम्नलिखित से प्रतिषिद्ध करते हुए एक संरक्षण आदेश पारित कर सकेगा ।
(ए) घरेलू ंिहंसा के किसी कार्य को करना ।
(बी) घरेलू ंिहसा के कार्यों के कारति करने में सहायता या दुष्प्रेरित करना ।
(सी) व्यथित व्यक्ति के नियोजन के स्थान में या यदि व्यथित व्यक्ति बालक हैं, तो उसके विद्यालय में या किसी अन्य स्थान में जहां व्यथित व्यक्ति बार-बार आता जाता हैं, प्रवेश करना ।
(डी) व्यथित व्यक्ति से सम्पर्क करने का प्रयत्न करना, चाहे वह किसी रूप में हो, इसके अन्तर्गत वैयक्तिक, मौखिक या लिखित या इलैक्ट्रोनिक या दूरभाषीय सम्पर्क भी है ।
(ई) किन्ही आस्तियों का अन्य संक्रामण करना, उस बैंक लाकरों या बैंक खातों का प्रचालन करना जिनका दोनों पक्षों द्वारा प्रयोग या धारण या उपयोग, व्यथित व्यक्ति और प्रत्यर्थी द्वारा संयुक्ततः या प्रत्यर्थी द्वारा अकेले किया जा रहा हैं, जिसके अन्तर्गत उसका स्त्रीधन या अन्य कोई सम्पत्ति भी है, जो मजिस्टैªट की इजाजत के बिना या तो पक्षकारों द्वारा संयुक्ततः या उनके द्वारा पृथकतः धारित की हुई हैं ।
(एफ) आश्रितों, अन्य नातेदारों या किसी एैसे व्यक्ति को जो व्यथित व्यक्ति के घरेलू हिंसा के विरूद्ध सहायता देता है, के साथ हिंसा कारित करना ।
(जी) एैसा कोई अन्य कार्य करना जो संरक्षण आदेश में विनिर्दिष्ट किया गया हैं ।
टिप्पणियांः
जो आदेश मजिस्ट्रेट धारा 18 के तहत जारी कर सकता है वह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा और उसे निरस्त या अवैध नहीं किया जा सकेगा । यदि कोई पिछला संतोषजनक अतीत या शिकायतकर्ता को उसके द्वारा झेले गये घरेलू ंिहंसा के कृत्य को या उसे दोबारा सहन करने की स्थिति में न्यायालय सरंक्षण आदेश पारित कर सकता है । यह आदेश ज्यादातर अस्थाई निषेधाज्ञा के अनुरूप होते हैं । इस आदेश को पारित करने का मकसद केवल प्रतिवादी के व्यवहार को नियंत्रित करना है और इसके अलावा उसके द्वारा भविष्य में उसे एैसी स्थिती से रोका जाना है जिसके कारण वह घरेलू हिंसा के किसी भी कृत्य को कारित करने वाला हो ।
भारत में संरक्षण आदेश का प्रावधान यू.एस.ए. के विभिन्न राज्यों के प्रावधानों का मिला-जुला स्वरूप है । यू.एस. में विभिन्न राज्यों के भिन्न-भिन्न प्रावधान हैं जिसमें तीन मुख्य तरह के आदेश होते हैं या तो आपातकालीन आदेश, सरंक्षण आदेश और संयम का आदेश । जबकि भारत में इन तीनों आदेशों का एक ही धारा में जोड़ दिया गया है ।
उपधारा मेें यह स्पष्ट तोर पर उल्लेखित है कि मजिस्ट्रेट कौन सा आदेश पारित कर सकता है और प्रत्येक आदेश स्वतः स्पष्ट है ।
उपधारा (ए) और (बी) में प्रतिवादी को घरेलू हिंसा के कृत्य को कारित करने घरेलू ंिहसा के कार्यों के कारति करने में सहायता या दुष्प्रेरित करने से रोके जाने के बारे में वर्णन किया गया है ा
उपधारा (सी) व (डी) मुख्यतः निषेध और रोकथाम से संबंधित हैं । इसमें यह प्रावधान दिया गया है कि प्रतिवादी व्यथित महिला के नियोजन के स्थान, जहां व्यथित महिला कार्य या नौकरी करती हो । इसके अलावा यदि व्यथित व्यक्ति बालक हैं, तो उसके विद्यालय में या किसी अन्य स्थान में जहां व्यथित महिला बार-बार आता जाती है वहां आन जाना प्रतिबंधित होगा । इसके अलावा व्यथित व्यक्ति से सम्पर्क करने का प्रयत्न करना, चाहे वह किसी रूप में हो, इसके अन्तर्गत वैयक्तिक, मौखिक या लिखित या इलैक्ट्रोनिक या दूरभाषीय सम्पर्क करना भी प्रतिबंधित होगा जिसके कारण किसी भी प्रकार के घरेलू ंिहसा के कार्यों के कारति करने में सहायता या दुष्प्रेरित करना भी प्रतिबंधित है ।
उपधारा (ई) में शिकायतकर्ता की आस्तियों को सुरक्षित रखना तथा एैसे स्रोत जहां से शिकायतकर्ता को अपने वर्तमान विवाह से लाभ अर्जित कर रही हो । जबकि इस धारा में मजिस्ट्रेट शिकयतकर्ता या प्रतिवादी की आस्तियों को फ्रीज करन सकता है जब कि केवल शिकायतकर्ता को इसमें तत्काल एवं आकस्मिक हित हो ।
उपधारा (एफ) प्रतिवादी को शिकायतकर्ता के ऊपर अप्रत्यक्ष रूप से उसके आश्रितों, अन्य नातेदारों पर अनुचित दबाव डालने से रोकना । उपधारा (जी) मजिस्ट्रेट के द्वारा शिकायतकर्ता के हक में औ न्यायहित में सरंक्षण आदेश पारित करने के बारे में है ।
प्रश्न
प्रश्नः प्राईमा फेसाई का अर्थ क्या है जैसा कि इस धारा में दिया गया है ।
उत्तरः प्राईमा फेसाई लैटिन मूल का शब्द है जिसका अर्थ होता है प्रथम दृष्टिया या प्रथम प्रस्तुति । कानूनी भाषा में इसे इस मामले में प्रयोग किया जाता है जो कि प्रारंभिक जांच में प्रमाणित पाया जाता हो । प्राईमा फेसाई दो बातों का वर्णन करता है, पहला अपने पक्ष में आदेश पारित करवाने के पर्याप्त सबूत या अन्य कोई विशिष्ट प्रमाण जिससे दावाकर्ता के केस को प्रमाणित माना जाता है । घरेलू हिंसा अधिनियम में एम.एल.सी. जिसमें गंभीर मारपीट या हिंसा के उग्र रूप का वर्णन किया गया हो, वह संरक्षण देने के लिए पर्याप्त आधार है न कि केवल इतना कह देने से कि मुझे मारा गया है ।
प्रश्नः जैसा कि धारा में प्रावधानित किया गया है कि ‘प्रतिवादी को सुनवाई का पर्याप्त मौका दिया गया‘ इसका अर्थ यह होगा कि इस धारा के अन्तर्गत कोई एकपक्षीय आदेश पारित नहीं किया जायेगा ।
उत्तरः यह कानून में विसंगति जैसा लगता है । यह याद रखना होगा कि माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा यह माना गया है कि घरेलू हिंसा का कानून बहुत ही अनाड़ी तरीके से तैयार किया गया है । हमें उस विकल्प के साथ चलना होगा जिसमें जो समझ में आता है और जिससे अराजकता न फैले । इस परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जबकि एैसे उदाहरण भी सामने आये हैं जहां संरक्षण का आदेश एकपक्षीय रूप से पारित किया गया है । मेरे दृष्टिकोण के अनुसार इसे केवल प्रतिवादी को सुनवाई का मौका देने के बाद लागू करना चाहिए । संदर्भ बत्रा बनाम बत्रा ।
प्रश्नः मेरे पत्नी ने मेरी शादीशुदा बहन के बिरूद्ध सरंक्षण आदेश की मांग की है जो कि अपने अलग घर में रहती है । क्या उसके विरूद्ध सरंक्षण आदेश पारित किया जा सकता है ।
उत्तरः नहीं, चूंकि पति की बहन शिकायतकर्ता के साथ साझी गृहस्थी प्रयोग नहीं करती है इसलिए उसके विरूद्ध कोई भी संरक्षण आदेश पारित नहीं किया जा सकता है ।
प्रश्नः क्या शिकायतकर्ता अपने सास-ससुर के विरूद्ध स्त्रीधन की मांग कर सकती है ।
उत्तरः हां, वह स्वतंत्र रूप से उनके विरूद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही कर सकती है और साथ ही अपने पति को इस घरेलू हिंसा को नहीं रोकने लिए उसको भी शामिल कर सकती है ।
प्रश्नः क्या इस अधिनियम में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को गिरफतार करवा सकता है ।
उत्तरः नहीं, यदि कोई घरेलू हिंसा के साथ-साथ संज्ञय अपराध का आरोप प्रतिवादी के विरूद्ध लगाया जाता है तब भी मजिस्ट्रेट इस अधिनियम के तहत प्रतिवादी को गिरफतार नहीं कर सकता है । जबकि मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को किसी संरक्षण आदेश का उल्लघंन करने पर प्रतवादी को गिरफतार करवा सकता है, जिसे अन्य आर्टिकल में वर्णित किया गया है ।
प्रश्नः निषधाज्ञा के आदेश का क्या अर्थ होता है ।
उत्तरः प्रतिषेधात्मक आदेश को सामान्यतः निषेधाज्ञा आदेश कहा जाता है । एैसा आदेश किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार के कार्य को कारित करने से रोक सकता है । लाभकारी आदेश को अनिवार्य निषेधाज्ञा कहा जाता है । महिला को घरेलू हिंसा से संरक्षण दिलवाने के लिए प्रतिषेधात्मक आदेश अस्थाई या एकपक्षीय रूप से पारित किया जाता है । मजिस्ट्रेट प्रतिषेधात्मक आदेश पारित कर सकता है और मजिस्ट्रेट ही प्रतिवादी को किसी कृत्य को कारित करने से रोकने के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा का आदेश भी पारित कर सकता है । हालांकि विवादास्पद मुद्दा यह कि अनिवार्य निषेधाज्ञा का आदेश केस के समाप्त होने पर पारित किया जा सकता है । आज तक इस बात का कोई स्पष्टीकरण प्राप्त नहीं है ।
प्रश्नः यदि मेरे विरूद्ध झूठे सबूतों के आधार पर निषेधाज्ञा का आदेश पारित किया जाता है तो क्या होगा ।
उत्तरः हमें यह समझना होगा कि झूठा सबूत भी न्यायालय के समक्ष एक सबूत है । इस बात का भार प्रतिवादी के ऊपर है कि वह इसे प्रमाणित करे कि वह सबूत झूठा है या फिर मजिस्ट्रेट के दिमाग में यह पर्याप्त रूप से यह बात डाले कि वह उस पर निर्भर हो जाये । यह कहा गया है कि किसी भी गलत आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है । हालांकि प्रथम दृष्टिया केेस पर आधारित अंतरिम आदेश को निरस्त नहीं किया जा सकता है ।
प्रश्नः क्या निषेधाज्ञा का आदेश सुनवाई की प्रथम दिनांक को पारित किया जा सकता है ।
उत्तरः हां, इस बात की बिल्कुल संभावना है कि मजिस्ट्रेट सुनवाई की प्रथम दिनांक को निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर सकते हैं यदि प्रार्थना पत्र शपथपत्र अन्तर्गत धारा 23(2) घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत संलग्न किया गया हो ।
प्रश्नः क्या निषेधाज्ञा का आदेश पति को जवाबदावा दाखिल किये जाने का अवसर दिये जाने बिना पारित किया जा सकता है ।
उत्तरः जैसा कि उपरोक्त मंंे वर्णन किया गया है कि मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्रदत्त की हुई है कि वह पति को जवाबदावा दाखिल किये बिना निषोधाज्ञा का आदेश पारित कर सकता है ।
प्रश्नः क्या मैं अपनी पत्नी के विरूद्ध घरेलू ंिहंसा के तहत निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर सकता हूं ।
उत्तरः नहीं, इस अधिनियम में यह विकल्प केवल महिला के पास है ।
प्रश्नः क्या लिव-इन पार्टनर अपने पक्ष में संरक्षण आदेश पारित कर सकती है ।
उत्तरः हां, यह बिल्कुल संभव है यदि यह सम्बन्ध विवाह के सम्बन्ध की प्रकृति का हो, तब लिव-इन पार्टनर अपने पक्ष में संरक्षण आदेश पारित करवा सकती है ।
प्रश्नः क्या तलाकशुदा पत्नी अपने पूर्व पति के विरूद्ध संरक्षण आदेश पारित करव सकती है।
उत्तरः हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि तलाकशुदा पत्नी अपने पूर्व पति के विरूद्ध घरेलू हिंसा का मुकदमा दाखिल कर सकती है इसलिए इस तर्क के परिणामस्वरूप वह अपने पूर्व पति के विरूद्ध सभी प्रकार के आदेश पारित करवा सकती है ।
मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – info@shoneekapoor.com पर पूछ सकते हैं ।
यदि आप घरेलू ंिहंसा के मामलों में आदमी के हक में पारित नवीनतम निर्णय के बारे में जानना चाहते हैं तो मैं आपको यह सलाह दूंगा कि आप इस पेज को पढें
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